क्या आप जानते हैं कि जैविक खेती से पैदावार में 50% तक की वृद्धि हो सकती है? यह आंकड़ा काफी चौंकाने वाला है। लेकिन, यह सच है।
निर्जीव खेती की पारंपरिक खेती विधियां केवल मिट्टी की उर्वरता को कम करती हैं। इनका कृषि उपज पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
विपरीत, ऑर्गेनिक खेती मिट्टी को स्वस्थ रखती है। और सहायता करती है पर्यावरण अनुकूल तरीके से स्वस्थ खाद्य पदार्थ का उत्पादन करने में।
प्रमुख बिंदु
- जैविक खेती से फसलों की पैदावार में 50% तक की वृद्धि हो सकती है।
- यह मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने में मदद करती है।
- ऑर्गेनिक खेती पर्यावरण के अनुकूल है और स्वस्थ खाद्य पदार्थ उगाने में सहायक है।
- जैविक कृषि से किसानों को कम लागत पर अधिक उत्पादन प्राप्त होता है।
- इससे मिट्टी, पानी और वायु प्रदूषण भी कम होता है।
परिचय
दुनिया भर में जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। किसान रासायनिक खादों और जहरीले कीटनाशकों का उपयोग बढ़ा रहे हैं। इसकी वजह से प्राकृतिक संतुलन को नुकसान हो रहा है।
जनसंख्या वृद्धि और फसल उत्पादन की चुनौतियां
बढ़ती जनसंख्या फसलों की मांग बढ़ा रही है। किसानों को ज्यादा उत्पादन देना पड़ रहा है। इसके लिए वे रासायनिक खेती का सहारा ले रहे हैं।
प्राचीन काल में जैविक खेती का महत्व
कभी पारंपरिक कृषि की विधियां उपयोग में थीं। ऑर्गेनिक खेती से मिट्टी स्वस्थ बनती थी। भारत में गौपालन भी किया जाता था, जो बहुत लाभकारी था।
रासायनिक खेती के दुष्परिणाम
रासायनिक खाद और कीटनाशक मिलावट करते हैं। इससे शक्तिहीन तथा अस्वस्थ पौधे होते हैं। यह पर्यावरण बिगाड़ता है और सेहत पर नुकसान करता है।
जैविक खेती की अवधारणा
जैविक खेती यानी ऑर्गेनिक फार्मिंग एक लोकप्रिय कृषि विधि है। इसमें कोई भी सांयांत्रिक उर्वरक और कीटनाशक नहीं होता। इस प्रकार की कृषि प्रकृतिक है और प्राकृतिक विधानुसार है। यह भूमि को प्राकृतिक रूप से मिट्टी की शक्ति देती है।
जैविक कृषि विधियों की परिभाषा
जैविक खेती में सिर्फ प्राकृतिक साधनों का उपयोग होता है। इसमें जैविक खाद, कंपोस्ट, हरी खाद, जैविक कीटनाशक शामिल होते हैं। फसल चक्र भी इस विधि में महत्वपूर्ण भाग है। ये तत्व मिट्टी को साफ और मजबूत रखते हैं और पर्यावरण के लिए अच्छे हैं।
अंतरराष्ट्रीय जैविक खेती बाजार
जैविक उत्पादों का स्वादिष्टता और स्वास्थ्य के लिए विश्वास बढ़ रहा है। लोग इन उत्पादों को अपने दिनचर्या में ज्यादा शामिल कर रहे हैं। इससे जैविक उत्पादों का बाजार तेज़ी से बढ़ रहा है।
1990 के दशक के बाद से जैविक उत्पादों की मांग लगातार बढ़ी है। कई देशों ने प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने के लिए कार्रवाई की है। इससे तकनीकी तरीके से जैविक खेती करने वाले किसानों की संख्या बढ़ी है। जैविक उत्पादों का अंतरराष्ट्रीय बाजार मुख्य रूप से यहाँ है।
भारत में जैविक खेती का इतिहास
भारत में जैविक खेती की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। कृषकों ने शुरू से ही प्राकृतिक खेती की विधियों का पालन किया। ऑर्गेनिक फार्मिंग की यह परंपरा के कई पीढ़ी आगे बढ़ गई है।
आधुनिक युग में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की गई हैं। आजकल, इसे बढ़ावा देने के लिए और भी तकनीकी तरीके उपलब्ध हैं।
राज्य सरकारों की पहल
आजादी के बाद, कई राज्य सरकारों ने जैविक खेती को बढ़ावा देने के प्रयास किए है। ये सरकारें कृषकों को ऑर्गेनिक फार्मिंग के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं।
राज्य सरकार ने कृषकों को प्रशिक्षण, वित्तीय सहायता और तकनीकी सहायता दी। यह उन्हें बेहतर उत्पादन करने में मदद करता है।
इससे भारतीय उद्योग को भी फायदा मिलता है। एक मजबूत कृषि सेक्टर देश के लिए फायदेमंद है।
केन्द्र सरकार की भूमिका
भारत सरकार भी जैविक खेती को बढ़ावा देने में जुटी है। उन्होंने कई कदम उठाये हैं जो कृषकों को समर्थन करते हैं।
इनमें वित्तीय सहायता, प्रमाणीकरण सुविधा, प्रशिक्षण कार्यक्रम, और बाजार पहुंच को बढ़ाना शामिल है। ये उपाय भारतीय जैविक क्षेत्र के विकास में मददगार हैं।
जैविक खेती की तकनीकें
जैविक खेती में पारंपरिक और प्राकृतिक तकनीकों का उपयोग किया जाता है। इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनी रहती है. उपज का स्तर भी बढ़ता है.
कई विभिन्न तकनीकों का है उपयोग. इनमें से कुछ मुख्य हैं:
जैविक खाद और कंपोस्ट
प्राकृतिक रूप से जैविक खाद और कंपोस्ट तैयार की जाती है। गोबर, गोमूत्र, पुआल आदि को मिलाकर बनाया जाता है. यह मिट्टी की उर्वरा बढ़ती है और पौधों को पोषण पहुंचाता है.
यह प्रक्रिया रासायनिक खाद की तुलना में सस्ती होती है. और पर्यावरण के लिए भी अच्छी है.
जैविक कीटनाशक
रासायनिक कीटनाशकों के बजाय जैविक कीटनाशक का इस्तेमाल होता है। उनमें नीम का तेल, लहसुन, अदरक आदि होते हैं. ये कीटों और बीमारियों से पौधों को बचाते हैं.
वे मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए सुरक्षित होते हैं.
फसल चक्र प्रणाली और मिश्रित खेती
फसल चक्र प्रणाली एवं मिश्रित खेती क्रियाकलाप जैविक खेती के लिए महत्वपूर्ण हैं। इन्हें अच्छे से उगाने से मिट्टी के पोषक तत्वों की सुरक्षा होती है.
एक ही खेत में कई प्रकार की फसलें उगाने से फायदा होता है. यह भूमि का ज़्यादा उपयोग होने देता है. और कीट प्रबंधन में भी मदद मिलती है.
ये प्राकृतिक कृषि तकनीकें केवल मिट्टी को बेहतर बनाने में मददगार नहीं हैं. बल्कि उनसे फसलों की मात्रा भी बढ़ती है. यह तकनीकें पर्यावरण के लिए भी अच्छी है और लागत प्रभावी होती हैं.
ऑर्गेनिक खेती
निर्जीव कृषि विधि ऑर्गेनिक खेती है जिसमें रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग नहीं होता। इसमें ऑर्गेनिक खेती तकनीक में जैविक खाद, कंपोस्ट, हरी खाद, और जैविक कीटनाशकों का इस्तेमाल होता है। यह तकनीक मिट्टी को मजबूत और स्वस्थ बनाती है.
ऑर्गेनिक खेती में कम लागत और अधिक उपज होती है. जैविक खाद और कीटनाशक बनाने की लागत कम होती है.
जिससे उत्पादन की लागत कम होती है. मिट्टी मजबूत रहती है, जो अधिक उपज देती है.
लाभ | परंपरागत खेती | ऑर्गेनिक खेती |
---|---|---|
लागत | अधिक | कम |
उपज | कम | अधिक |
स्वास्थ्य प्रभाव | नुकसानदायक | लाभकारी |
पर्यावरण प्रभाव | प्रदूषण | संरक्षण |
इस से ऑर्गेनिक खेती किसानों को फायदा पहुँचाती है. यह कम लागत वाला है, साथ ही अधिक उपज देती है.
यह किसानों के लिए फायदेमंद है. इससे मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को भी फायदा होता है.
जैविक खेती के लाभ
जैविक खेती कम लागत में अधिक उपज देती है। इसमें जैविक तरीके से खादों और नियंत्रकों का उपयोग होता है।
मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है। इससे पर्यावरण का भी संरक्षण होता है।
कृषि पद्धति सुधारती रहती है, जिससे प्रदूषण कम होता है।
कृषकों के लिए लाभ
जैविक खेती में जैविक खाद का उपयोग होता है। यह कृषकों को सस्ते प्राकृतिक तरीके से पोषक तत्व प्रदान करती है।
कृषकों की मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनाए रखने में मदद मिलती है। इससे कम लागत में ज्यादा उत्पादन होता है।
मिट्टी के लिए लाभ
जैविक पद्धति सच्चाई सृष्टि के रचानात्मक शक्तियों का समृद्धांत करती है। इससे मिट्टी स्वस्थ और उर्वर बनाए रहती है।
जैविक खाद और कम्पोस्ट मिट्टी को पोषक तत्वों से भरपूर बनाते हैं। उसकी संरचना को मजबूत करने में मदद करते हैं।
इस प्रक्रिया से मिट्टी का उर्वरता बढ़ता है, और यह लंबे समय तक उत्पादित बनी रहती है।
पर्यावरण के लिए लाभ
रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों से जुड़ी समस्याओं से बचाव होता है। इससे प्रदूषण का खतरा कम होता है।
यह पद्धति पानी, हवा, और मिट्टी की स्वच्छता का भी ध्यान रखती है। जिससे आस-पास की परिस्थितियों पर अच्छा असर पड़ता है।
लाभ | विवरण |
---|---|
कृषकों के लिए | कम लागत, अधिक उपज, गुणवत्तापूर्ण उत्पाद |
मिट्टी के लिए | उर्वरता बढ़ाना, पोषक तत्व संरक्षण, मजबूत संरचना |
पर्यावरण के लिए | प्रदूषण कम करना, संरक्षण, पारिस्थितिकी तंत्र संतुलन |
महाराष्ट्र के किसान तुलसीराम झामरे की सफलता कहानी
महाराष्ट्र के बुरहानपुर गांव का तुलसीराम झामरे ने जैविक खेती की अवधारणा को आगे बढ़ाया। उनकी कहानी सिद्ध करती है कि कैसे जैविक खेती से मुनाफा बढ़ता है।
परंपरागत से जैविक खेती में बदलाव
तुलसीराम झामरे ने पहले रासायनिक खेती की थी। फिर उन्होंने देखा कि रासा्यनिक खेती मुनाफे को कम कर रही है। सो, उन्होंने जैविक खेती का रास्ता चुना जिससे कम लागत में ज्यादा मुनाफा हो।
जैविक उत्पादन और लाभ
अब, झामरे जैविक खाद और कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं। एक एकड़ खेत में लगभग 30,000 रुपये की लागत होती है। और वह लगभग 2,00,000 रुपये का मुनाफा कमाते हैं।
तुलसीराम झामरे की इस सफलता से उन्होंने दूसरे किसानों को भी जैविक खेती करने के लिए प्रेरित किया है। ताकि वे भी अधिक मुनाफा कमा सकें।
भागलपुर में किसान समूह द्वारा जैविक खेती
भागलपुर जिले के पीरपैंती गांव में स्थित एग्रो प्वाइंट नामक किसान समूह ने जैविक खेती को नया आयाम दिया है। इस समूह में तकरीबन 1000 किसान हैं जो जैविक खेती का समर्थन करते हैं।
एग्रो प्वाइंट समूह का गठन
यहाँ के किसान पारंपरिक रासायनिक खेती की समस्याओं से चरम से परिचित थे। उन्होंने मिलकर एग्रोपॉइंट समूह का गठन किया। इस समूह का उद्देश्य पर्यावरण के लिए अच्छी और स्वास्थ्यपूर्ण जैविक खेती को प्रोत्साहित करना था।
जैविक खाद और कीटनाशक बनाने की विधि
समूह के किसान गोमूत्र, गोबर, गुड़ और अन्य पौधों से जैविक खाद बनाते हैं। यह खाद उनकी खेती में लगाई जाती है। उन्होंने जैविक कीटनाशक के रूप में नीम के पत्तों का प्रयोग शुरू किया। इससे वे अपनी फसलों को कीट और रोगों से बचाते हैं।
इन पद्धतियों से उत्पादन बढ़ता है और लागत भी कम आती है। एग्रोपॉइंट समूह के किसानों के लिए जैविक खेती में सफलता मिल गई है। वे अब दूसरों को भी इस दिशा में प्रेरित कर रहे हैं।
चुनौतियां और अवसर
जैविक खेती के कुछ चुनौतियां हैं पर यह एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। प्रमाणन प्रक्रिया मुश्किल है, जिसे पोषक लागतें समझने में किसानों को मुश्किल होती है।
कई किसानों के उत्पाद बाजार तक नहीं पहुंच पाते, जिसके कारण उन्हें उचित मूल्य नहीं मिलता। इस बाजार पहुंच को बढ़ाना चुनौतीपूर्ण होता है।
प्रमाणीकरण और विपणन चुनौतियां
जैविक उत्पादों का प्रमाणीकरण चुनौतीपूर्ण और महंगा हो सकता है। किसानों को स्वतंत्र एजेंसियों से मान्यता दिलानी पड़ती है।
बाजार तक पहुंच की दिक्कत भी एक बड़ी समस्या है। छोटे किसान मंडियों तक पहुंच नहीं पाते, जिससे उन्हें ठीक मूल्य नहीं मिलता।
जागरूकता और प्रशिक्षण की आवश्यकता
अधिकांश किसान जैविक खेती के फायदों से अनजान हैं। जरूरत है कि उन्हें जागरूक और प्रशिक्षित किया जाए।
कृषि विज्ञान केंद्र, गैर-सरकारी संगठन, और उद्योग इस मामले में कुछ कर रहे हैं। फिर भी, कई गांव किसानों से दूर हैं। यदि किसानों को प्रशिक्षित किया जाए तो जैविक खेती में सुधार हो सकता है।
FAQ
ऑर्गेनिक खेती क्या है?
ऑर्गेनिक खेती की परंपरा भारत में कब से चली आ रही है?
जैविक खेती में किन तकनीकों का उपयोग किया जाता है?
जैविक खेती से क्या लाभ हैं?
जैविक खेती की क्या चुनौतियां हैं?
स्रोत लिंक
- https://hi.vikaspedia.in/agriculture/best-practices/92893594092892492e-91594393793f-92a939932/91c94893593f915-916947924940
- https://www.tv9hindi.com/agriculture/organic-farming-benefits-jaivik-kheti-ke-labh-in-hindi-au127-1247600.html
- https://www.jagran.com/bihar/bhagalpur-farmers-producing-vegetables-by-doing-organic-farming-in-bhagalpur-20524669.html